प्रसून जोशी बोले- मैं निर्जीव वस्तुओं में भी जीवन देख सकता हूं, स्वामी विवेकानंद पर बनी डॉक्यूमेंट्री देखकर हैरान रह गया था प्रसिद्ध गीतकार, लेखक, एड गुरु और कवि प्रसून जोशी बुधवार को 49 साल के हो गए। उनका जन्म 16 सितंबर 1971 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में हुआ था। उन्हें लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए साल 2015 में पद्मश्री से नवाजा गया था। इस मौके पर उन्होंने दैनिक भास्कर से खास बातचीत करते हुए अपने जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों को साझा किया। प्रसून ने बताया, 'मेरे परिवार में सभी साहित्य को महत्व देते हैं। इसलिए बचपन से ही मेरा झुकाव साहित्य की ओर था। मुझे तो यह लगता है कि मेरे जीवन में स्पिरिचुअलिटी और प्रकृति का गहरा प्रभाव पड़ा है। प्रकृति आपको संघर्ष करना सिखाती है, आपको छल करना नहीं सिखाती। मैं एक माध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता हूं।' 'पहाड़ों का जीवन बिल्कुल भी सरल नहीं होता। उत्तराखंड में लोग अक्सर आध्यात्मिकता की खोज में आते हैं। बस प्रकृति को देखकर अभिभूत होना और उससे बहुत कुछ सीखना, बचपन में मैंने यही किया और यही मेरी शब्दावली में भी झलकता है। आज भी कभी जब मैं मुंबई की आपाधापी से परेशान हो जाता हूं तो मैं सीधे उत्तराखंड की तरफ भागता हूं। पहाड़ों का रुख करता हूं। कोरोना काल में भी मैं ऋषिकेश ड्राइव करके गया था और गंगा के किनारे कुछ समय बिताया था।' मां से ली साहित्य जगत की प्रेरणा उन्होंने कहा, 'दरअसल मेरी मां और मेरी नानी ने मुझे मेरी जिंदगी में बहुत प्रोत्साहित किया है। मैं मेरी नानीजी के बहुत करीब रहा हूं। उन्होंने 19 साल की उम्र में पढ़ने-लिखने की शुरुआत की और स्कूल की प्रिंसिपल बनकर रिटायर हुईं। उन्होंने मुझे लोक संस्कृति के बारे में बहुत सिखाया।' 'साहित्य जगत की बात की जाए तो मेरी मां ने मुझे सुमित्रानंदन पंत की कविताएं सुनाकर बड़ा किया। जिसके चलते साहित्य की ओर मेरा झुकाव शुरू से ही रहा। मैं मानता हूं कि बचपन में जो आप 16 या 17 साल की उम्र तक करते हैं, वो कहीं ना कहीं आपकी नींव होती है और मेरी नींव में साहित्य रच बस गया था।' जब खुद सरकंडे की लकड़ी तोड़कर पेन बनाया करते थे 'यूं तो मैं फोन पर भी अपनी रचनाएं लिख लेता हूं लेकिन असली फीलिंग पेन और पेपर के साथ ही आती है। मुझे याद है उस वक्त जब मैं उत्तराखंड में था तब हम सरकंडे की लकड़ी तोड़कर उसे छीलकर, उसे तिकोना आकार देकर पेन बनाया करते थे और जब उस पेन को स्याही में डुबोकर मैं लिखता था तब उस पेन से आ रही आवाज का अपना ही एक आनंद था।' परिवार के साथ प्रसून जोशी। मृत्यु पर लिखी थी पहली कविता 'यह वो समय था जब मैं 15 साल का था। मैं स्कूल में पढ़ा करता था और उस वक्त मैंने मृत्यु पर कविता लिखी थी, जिसे सुनकर मुझे बहुत प्रशंसा मिली लेकिन एक और चीज भी कही गई कि शायद मैं अपनी उम्र से बहुत जल्दी बड़ा हो गया हूं और गंभीर बातें करता हूं। 'जब शुरू-शुरू में लिखता था तो उसमें अध्यात्म का बहुत प्रभाव था। अपनी पहली कविता में मैंने मृत्यु की खूबसूरती का वर्णन किया था कि कैसे किसी खूबसूरत चीज को हम बिना पलक झपकाए देखते हैं और जब आप मृत्यु को देख लेते हैं तो आपकी पलक कभी नहीं झपकती तो क्या मृत्यु इतनी खूबसूरत है? मेरी पहली किताब 17 साल की उम्र में पब्लिश हो गई थी।' पुस्तकों से एड एजेंसी तक का सफर 'उस वक्त मेरी एक या दो किताबें छप चुकी थीं लेकिन परिवार चलाने के लिए मुझे कहीं ना कहीं नौकरी तो करनी ही थी क्योंकि कविताओं से तो सबका पेट नहीं भर सकता। इसलिए अपने पैरों पर खड़ा होना बहुत जरूरी था। इसीलिए मैंने एमबीए किया। उसके बाद मैं दिल्ली में ही एक ऐड एजेंसी में काम करने लगा। मेरे काम को वहां बहुत सराहा गया।' 'मुझे इंटरनेशनल अवॉर्ड मिले यहां तक कि कांस फिल्म फेस्टिवल में भी इसी वजह से मुझे प्रशंसा मिली और धीरे-धीरे मेरी कविताएं देखकर लोग मेरे पास आने लगे। मैं उन लोगों की एल्बम के गाने लिखा करता था। उसी समय मैंने मोहित चौहान के बैंड 'सिल्क रूट' के लिए भी गाने लिखे। उसके बाद शुभा मुद्गल जी ने मुझसे संपर्क किया 'अब के सावन ऐसे बरसे' गाने के लिए, तो गैर फिल्मी काम अच्छा चल रहा था।' फिल्मों के गाने सुनने की मनाही थी 'मुझे बचपन से ही घर में फिल्मी गाने सुनने की परमिशन नहीं थी। रेडियो पर भी अगर कोई फिल्मी गाना सुनता था तो पिताजी कहते थे यह क्या सुन रहे हो। मेरे पिताजी ने भी संगीत में मास्टर्स किया है। वे कहते थे कि कुमार गन्धर्व को सुनो।' 'मेरी लेखन और मेरी शब्दावली शायद इसीलिए इतनी अच्छी है क्योंकि फिल्मों के गानों से मेरा वास्ता नहीं पड़ा, इसीलिए शायद मेरे लेखन में शुद्धता झलकती हो। साथ ही फिल्म जगत के भी जो मेरे दोस्त हैं वे जानते हैं कि जब कभी भी मैं किसी कविता या किसी गीत के बोल सुनाता हूं तो मैं हमेशा गाकर ही सुनाता हूं।' विवेकानंद की डॉक्यूमेंट्री देखकर दंग रह गया था 'मैं एक दफा हवाई जहाज में सफर कर रहा था और उस समय मैं स्वामी विवेकानंद पर बनी डॉक्यूमेंट्री देख रहा था। जिसमें एक अंश आया जहां वे उसी उत्तराखंड के कसार देवी मंदिर की बात कर रहे थे और उसके सामने वाली चट्टान पर बैठकर उन्हें जो अनुभूति हुई वो बयां कर रहे थे। मैं यह देखकर दंग रह गया क्योंकि मैं भी उसी चट्टान पर अक्सर चार-पांच घंटे बैठा करता था उस घाटी को निहारता था और उस समय जो अनुभूति मुझे हुई, उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।' बेजान वस्तुओं में भी जान दिखती है मुझे 'मुझे लगता है कि दुनिया की सारी वस्तुओं में जान है चाहे वो निर्जीव हो या फिर जीवित। जैसे एक दीपक है, हम कहते हैं कि दीपक बुझ जाता है, जबकि मुझे लगता है कि दीपक सो गया शायद उसकी लौ थक गई और अब वो सो गया। उसी प्रकार जब संजय लीला भंसाली ने फिल्म 'ब्लैक' के लिए मुझे गाना लिखने को कहा, तो मेरे लिए वो एक टफ टास्क था। इसीलिए क्योंकि उस फिल्म में जो किरदार है ना वह सुन सकता है, ना वो बोल सकता है और ना वो देख सकता है इसीलिए मैंने गाना लिखा हां मैंने छू कर देखा है।' बेटी के साथ प्रसून जोशी। फिल्म 'लज्जा' से मिला पहला बड़ा ब्रेक 'उस वक्त मैं दिल्ली में था जब राजकुमार संतोषी जी ने मुझे फिल्म 'लज्जा' के लिए गाना लिखने को कहा। मेरे लिए बहुत बड़ी बात है क्योंकि मैं दो दिग्गजों के साथ काम कर रहा था। जहां उस फिल्म के गाने को आईडी अय्यर ने कंपोज किया था। वही उस गाने को गाने वाली थी भारत कोकिला लता मंगेशकर जी।' अपर्णा के लिए भी लिखी है कई सारी कविताएं अपनी पत्नी अपर्णा के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, 'अपर्णा से मेरी मुलाकात तब हुई जब हम दोनों ऐड एजेंसी के लिए काम करते थे। धीरे-धीरे हमें पता चला कि हमारे विचार काफी मिलते हैं और फिर हमने शादी कर ली। आज हमारी 15 साल की एक बेटी है और मैंने कुछ कविताएं अपर्णा के लिए भी लिखी हैं जो उनके पास सुरक्षित हैं। सीबीएफसी में चेयरमैन की पदवी स्वीकारी 'ये वो समय था जब सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन में बहुत कुछ चल रहा था। उस समय मुझे उसका चेयरमैन बनने के लिए बुलाया गया तो मुझे लगा कि वहां मेरी आवश्यकता है और मैं उस पदवी पर संतुलन बना पाऊंगा। इसलिए मैंने 2017 में सीबीएफसी का चेयरमैन बनना स्वीकार किया।' मेरी पत्नी ने दिया था सबसे बेहतरीन बर्थडे गिफ्ट 'मेरे जन्मदिन पर मुझे किशोरी अमोनकर जी का फोन आया। वे मेरी सबसे प्रिय क्लासिकल म्यूजिशियन रही हैं। मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं। उन्होंने मुझसे कहा कि उन्होंने मेरी कुछ रचनाएं पढ़ी हैं। उनकी आवाज सुनते ही मैं बहुत भावुक हो गया। कुछ साल पहले मेरी वाइफ ने इस फोन कॉल को अरेंज किया था।' Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Prasoon Joshi says- I can see life even in inanimate objects, I was shocked to see the documentary on Swami Vivekananda https://ift.tt/3kmbxYa

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प्रसिद्ध गीतकार, लेखक, एड गुरु और कवि प्रसून जोशी बुधवार को 49 साल के हो गए। उनका जन्म 16 सितंबर 1971 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में हुआ था। उन्हें लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए साल 2015 में पद्मश्री से नवाजा गया था। इस मौके पर उन्होंने दैनिक भास्कर से खास बातचीत करते हुए अपने जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों को साझा किया।

प्रसून ने बताया, 'मेरे परिवार में सभी साहित्य को महत्व देते हैं। इसलिए बचपन से ही मेरा झुकाव साहित्य की ओर था। मुझे तो यह लगता है कि मेरे जीवन में स्पिरिचुअलिटी और प्रकृति का गहरा प्रभाव पड़ा है। प्रकृति आपको संघर्ष करना सिखाती है, आपको छल करना नहीं सिखाती। मैं एक माध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता हूं।'

'पहाड़ों का जीवन बिल्कुल भी सरल नहीं होता। उत्तराखंड में लोग अक्सर आध्यात्मिकता की खोज में आते हैं। बस प्रकृति को देखकर अभिभूत होना और उससे बहुत कुछ सीखना, बचपन में मैंने यही किया और यही मेरी शब्दावली में भी झलकता है। आज भी कभी जब मैं मुंबई की आपाधापी से परेशान हो जाता हूं तो मैं सीधे उत्तराखंड की तरफ भागता हूं। पहाड़ों का रुख करता हूं। कोरोना काल में भी मैं ऋषिकेश ड्राइव करके गया था और गंगा के किनारे कुछ समय बिताया था।'

मां से ली साहित्य जगत की प्रेरणा

उन्होंने कहा, 'दरअसल मेरी मां और मेरी नानी ने मुझे मेरी जिंदगी में बहुत प्रोत्साहित किया है। मैं मेरी नानीजी के बहुत करीब रहा हूं। उन्होंने 19 साल की उम्र में पढ़ने-लिखने की शुरुआत की और स्कूल की प्रिंसिपल बनकर रिटायर हुईं। उन्होंने मुझे लोक संस्कृति के बारे में बहुत सिखाया।'

'साहित्य जगत की बात की जाए तो मेरी मां ने मुझे सुमित्रानंदन पंत की कविताएं सुनाकर बड़ा किया। जिसके चलते साहित्य की ओर मेरा झुकाव शुरू से ही रहा। मैं मानता हूं कि बचपन में जो आप 16 या 17 साल की उम्र तक करते हैं, वो कहीं ना कहीं आपकी नींव होती है और मेरी नींव में साहित्य रच बस गया था।'

जब खुद सरकंडे की लकड़ी तोड़कर पेन बनाया करते थे

'यूं तो मैं फोन पर भी अपनी रचनाएं लिख लेता हूं लेकिन असली फीलिंग पेन और पेपर के साथ ही आती है। मुझे याद है उस वक्त जब मैं उत्तराखंड में था तब हम सरकंडे की लकड़ी तोड़कर उसे छीलकर, उसे तिकोना आकार देकर पेन बनाया करते थे और जब उस पेन को स्याही में डुबोकर मैं लिखता था तब उस पेन से आ रही आवाज का अपना ही एक आनंद था।'

परिवार के साथ प्रसून जोशी।

मृत्यु पर लिखी थी पहली कविता

'यह वो समय था जब मैं 15 साल का था। मैं स्कूल में पढ़ा करता था और उस वक्त मैंने मृत्यु पर कविता लिखी थी, जिसे सुनकर मुझे बहुत प्रशंसा मिली लेकिन एक और चीज भी कही गई कि शायद मैं अपनी उम्र से बहुत जल्दी बड़ा हो गया हूं और गंभीर बातें करता हूं।

'जब शुरू-शुरू में लिखता था तो उसमें अध्यात्म का बहुत प्रभाव था। अपनी पहली कविता में मैंने मृत्यु की खूबसूरती का वर्णन किया था कि कैसे किसी खूबसूरत चीज को हम बिना पलक झपकाए देखते हैं और जब आप मृत्यु को देख लेते हैं तो आपकी पलक कभी नहीं झपकती तो क्या मृत्यु इतनी खूबसूरत है? मेरी पहली किताब 17 साल की उम्र में पब्लिश हो गई थी।'

पुस्तकों से एड एजेंसी तक का सफर

'उस वक्त मेरी एक या दो किताबें छप चुकी थीं लेकिन परिवार चलाने के लिए मुझे कहीं ना कहीं नौकरी तो करनी ही थी क्योंकि कविताओं से तो सबका पेट नहीं भर सकता। इसलिए अपने पैरों पर खड़ा होना बहुत जरूरी था। इसीलिए मैंने एमबीए किया। उसके बाद मैं दिल्ली में ही एक ऐड एजेंसी में काम करने लगा। मेरे काम को वहां बहुत सराहा गया।'

'मुझे इंटरनेशनल अवॉर्ड मिले यहां तक कि कांस फिल्म फेस्टिवल में भी इसी वजह से मुझे प्रशंसा मिली और धीरे-धीरे मेरी कविताएं देखकर लोग मेरे पास आने लगे। मैं उन लोगों की एल्बम के गाने लिखा करता था। उसी समय मैंने मोहित चौहान के बैंड 'सिल्क रूट' के लिए भी गाने लिखे। उसके बाद शुभा मुद्गल जी ने मुझसे संपर्क किया 'अब के सावन ऐसे बरसे' गाने के लिए, तो गैर फिल्मी काम अच्छा चल रहा था।'

फिल्मों के गाने सुनने की मनाही थी

'मुझे बचपन से ही घर में फिल्मी गाने सुनने की परमिशन नहीं थी। रेडियो पर भी अगर कोई फिल्मी गाना सुनता था तो पिताजी कहते थे यह क्या सुन रहे हो। मेरे पिताजी ने भी संगीत में मास्टर्स किया है। वे कहते थे कि कुमार गन्धर्व को सुनो।'
'मेरी लेखन और मेरी शब्दावली शायद इसीलिए इतनी अच्छी है क्योंकि फिल्मों के गानों से मेरा वास्ता नहीं पड़ा, इसीलिए शायद मेरे लेखन में शुद्धता झलकती हो। साथ ही फिल्म जगत के भी जो मेरे दोस्त हैं वे जानते हैं कि जब कभी भी मैं किसी कविता या किसी गीत के बोल सुनाता हूं तो मैं हमेशा गाकर ही सुनाता हूं।'

विवेकानंद की डॉक्यूमेंट्री देखकर दंग रह गया था

'मैं एक दफा हवाई जहाज में सफर कर रहा था और उस समय मैं स्वामी विवेकानंद पर बनी डॉक्यूमेंट्री देख रहा था। जिसमें एक अंश आया जहां वे उसी उत्तराखंड के कसार देवी मंदिर की बात कर रहे थे और उसके सामने वाली चट्टान पर बैठकर उन्हें जो अनुभूति हुई वो बयां कर रहे थे। मैं यह देखकर दंग रह गया क्योंकि मैं भी उसी चट्टान पर अक्सर चार-पांच घंटे बैठा करता था उस घाटी को निहारता था और उस समय जो अनुभूति मुझे हुई, उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।'

बेजान वस्तुओं में भी जान दिखती है मुझे

'मुझे लगता है कि दुनिया की सारी वस्तुओं में जान है चाहे वो निर्जीव हो या फिर जीवित। जैसे एक दीपक है, हम कहते हैं कि दीपक बुझ जाता है, जबकि मुझे लगता है कि दीपक सो गया शायद उसकी लौ थक गई और अब वो सो गया। उसी प्रकार जब संजय लीला भंसाली ने फिल्म 'ब्लैक' के लिए मुझे गाना लिखने को कहा, तो मेरे लिए वो एक टफ टास्क था। इसीलिए क्योंकि उस फिल्म में जो किरदार है ना वह सुन सकता है, ना वो बोल सकता है और ना वो देख सकता है इसीलिए मैंने गाना लिखा हां मैंने छू कर देखा है।'

बेटी के साथ प्रसून जोशी।

फिल्म 'लज्जा' से मिला पहला बड़ा ब्रेक

'उस वक्त मैं दिल्ली में था जब राजकुमार संतोषी जी ने मुझे फिल्म 'लज्जा' के लिए गाना लिखने को कहा। मेरे लिए बहुत बड़ी बात है क्योंकि मैं दो दिग्गजों के साथ काम कर रहा था। जहां उस फिल्म के गाने को आईडी अय्यर ने कंपोज किया था। वही उस गाने को गाने वाली थी भारत कोकिला लता मंगेशकर जी।'

अपर्णा के लिए भी लिखी है कई सारी कविताएं

अपनी पत्नी अपर्णा के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, 'अपर्णा से मेरी मुलाकात तब हुई जब हम दोनों ऐड एजेंसी के लिए काम करते थे। धीरे-धीरे हमें पता चला कि हमारे विचार काफी मिलते हैं और फिर हमने शादी कर ली। आज हमारी 15 साल की एक बेटी है और मैंने कुछ कविताएं अपर्णा के लिए भी लिखी हैं जो उनके पास सुरक्षित हैं।

सीबीएफसी में चेयरमैन की पदवी स्वीकारी

'ये वो समय था जब सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन में बहुत कुछ चल रहा था। उस समय मुझे उसका चेयरमैन बनने के लिए बुलाया गया तो मुझे लगा कि वहां मेरी आवश्यकता है और मैं उस पदवी पर संतुलन बना पाऊंगा। इसलिए मैंने 2017 में सीबीएफसी का चेयरमैन बनना स्वीकार किया।'

मेरी पत्नी ने दिया था सबसे बेहतरीन बर्थडे गिफ्ट

'मेरे जन्मदिन पर मुझे किशोरी अमोनकर जी का फोन आया। वे मेरी सबसे प्रिय क्लासिकल म्यूजिशियन रही हैं। मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं। उन्होंने मुझसे कहा कि उन्होंने मेरी कुछ रचनाएं पढ़ी हैं। उनकी आवाज सुनते ही मैं बहुत भावुक हो गया। कुछ साल पहले मेरी वाइफ ने इस फोन कॉल को अरेंज किया था।'



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Prasoon Joshi says- I can see life even in inanimate objects, I was shocked to see the documentary on Swami Vivekananda


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