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सोनू सूद के लिए जरूरतमंदों की मदद करना ही आजादी का असली उत्सव, बोले- इसे स्‍कूल-कॉलेजों में एक विषय की तरह पढ़ाना चाहिए

देश के 74वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अभिनेता सोनू सूद ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। इस मौके पर उन्होंने बताया कि उनके लिए आजादी के मायने जरूरतमंदों की मदद करते हुए उन्हें उनके दुखों से आजाद करना है। उनके मुताबिक मदद करने के बारे में बच्चों को स्कूल-कॉलेज में पढ़ाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि उनका फोकस अभी फिल्मों पर नहीं बल्कि लोगों की मदद करने पर है।

सोनू ने कहा, 'लॉकडाउन में कई स्क्रिप्‍ट्स तो आई हैं, मगर उन्‍हें पढ़ने का दिल नहीं करता है। मेरे पास मदद मांगने से जुड़े रोजाना 1500 से ज्‍यादा ईमेल आ रहे हैं। अभी की बात करूं तो इसी हफ्ते हम फिलीपींस के एक से चार साल उम्र तक के ऐसे बच्चों को भारत लेकर आए हैं, जिनका लिवर ट्रांसप्लांट होना है।'

सोनू के लिए ये है सेलिब्रेशन

'ये ऑपरेशन दिल्‍ली के मैक्‍स अस्‍पताल में होता है। लॉकडाउन की वजह से फ्लाइट्स नहीं चल रही थीं, तो उनके परिजनों ने मुझसे गुहार लगाई। जिसके बाद हम इसी शुक्रवार को उन्हें लेकर आए हैं, वो भी कुल 39 डोनर्स के साथ। मेरे लिए यही सब आजादी का सेलिब्रेशन है। उनकी जिंदगी में फर्क ला सकूं।'

डॉक्टर्स से की मदद की अपील

आगे उन्होंने बताया, 'एक जैवलिन थ्रो प्‍लेयर हैं सुदामा। हांगकांग में प्रैक्टिस के दौरान उनका कंधा चोटिल हो गया था। किसी ने उनकी मदद नहीं की। मजबूरन उन्‍हें घर बैठना पड़ गया। किसी ने मुझे उनके बारे में बताया। जिसके बाद मैंने उनकी मदद करने की ठानी।'
'मैं डॉक्‍टर्स से भी गुहार लगाता रहता हूं कि कम से एक एक पेशेंट को अडॉप्‍ट करते हुए उनका ऑपरेशन और उनकी सर्जरी स्‍पॉन्‍सर करें।'

नजर आ रहा है बदलाव

सोनू के मुताबिक 'मुझे बदलाव नजर भी आ रहा है। एक डॉक्‍टर ने मुझे टैग करते हुए बताया कि उन्‍होंने कोविड के चार पेशेंट को एडॉप्‍ट करते हुए उनका इलाज किया और अब वो रिकवर कर रहे हैं। मेरे ख्‍याल से अगर मैं इस तरह एक भी इंसान को इंस्‍पायर कर पाया तो यही मेरे लिए उपलब्धि है।'

स्कूल-कॉलेज में इसका एक विषय हो

'मेरी तो ख्‍वाहिश है कि स्‍कूल और कॉलेज के सिलेबस में एक सब्‍जेक्‍ट ही जोड़ा जाना चाहिए, जिसके तहत दूसरों की मदद कैसे करें, पढ़ाया जाए। लोगों के जहन में बस जाए कि इंजीनियर, डॉक्‍टर बनना कामयाबी नहीं। नारे लगाना मेरे लिए देशभक्ति नहीं है। लोगों की मदद करना देशभक्ति है।'

स्क्रिप्ट पढ़ने का मन नहीं करता

आगे उन्होंने कहा, 'इस बीच में मेरे पास कई स्क्रिप्‍ट्स आईं, लेकिन उनके सिर्फ दो या तीन पन्‍ने ही पढ़ पाता हूं। उन्‍हें पढ़ने का दिल नहीं करता। थोड़ी बहुत कहानियां पढ़ता हूं, पर फिर वापस से लोगों की मदद करने के काम में लग जाता हूं। लोगों की ट्रीटमेंट, एजुकेशन, वेलफेयर के बारे में काम करता रह जाता हूं।'

अपने बारे में सोचने का समय नहीं मिल रहा

'मेरे ख्‍याल से लोगों के जीवन में इतने दुख देख रहा हूं कि अपने बारे में सोचने का वक्‍त ही नहीं मिल रहा है। मेरे प्रोजेक्‍ट बैकफुट पर चले गए हैं। यह जो समय है, वह देश के बारे में सोचने का है। अपने बारे में नहीं।'

लोग हर तरह की समस्या मुझे बता रहे

सोनू ने बताया, 'रोजाना मुझे डेढ़ से दो हजार ईमेल्स आ रही हैं। लोग हर तरह की समस्या के लिए मुझसे गुहार लगा रहे हैं। छोटी से बड़ी सब तरह की। मैंने अपनी वाइफ और बच्‍चों की ड्यूटी भी ईमेल पढ़ने पर लगा दी है। चार-पांच दोस्‍तों को सोशल मीडिया पर नजर रखने के लिए कहा है। ताकि कोई भी इमरजेंसी वाली चीज छूट ना जाए। मैं भी भगवान से प्रार्थना करता रहता हूं कि वो मुझे उन लोगों से जरूर कनेक्‍ट करते रहें, जिनकी समस्‍या सच में वाजिब हो।'

हमें खुद अपना मिनिस्टर बनना होगा

उन्होंने कहा, 'मैं बाकी लोगों से भी अपील करूंगा कि वो भी आगे बढ़ें और जरूरतमंदों की मदद करें। बड़े लोगों के आगे आने का इंतजार करते रहेंगे तो सारी उम्र निकल जाएगी। इस सोच से बाहर निकलना होगा कि अरे हम तो टैक्‍स भरते हैं, तो सरकार क्‍यों नहीं करती है। विधायक, सांसद क्‍यों नहीं करता। हमें अपनी समस्‍याओं का निराकरण करने के लिए खुद अपना मिनिस्‍टर बन जाना चाहिए।'

लोग खुद ब खुद मदद करने लगे

अपने अभियान के बारे में बताते हुए सोनू ने कहा, 'लोगों को मैसेज गया कि एक इंसान मदद को निकला हुआ है। ऐसे में एयरपोर्ट वगैरह पर क्‍लीयरेंस आसानी से मिलने लगे हैं। मैं दूतावास में बातें कर रहा हूं। ब्‍यूरोक्रेट्स से बातें कर रहा हूं। उनकी तरफ से भी सही रिस्‍पॉन्‍स मिल रहा है। इस तरह विदेशों से लोगों को यहां लाने में आसानी हो रही है।'

सोनू के मुताबिक 'झंडे को लहराता हुआ देख जो फीलिंग आती है जहन में, उसे शब्‍दों में बयान नहीं कर सकता। लगता है कि हम पैदा ही हुए हैं, तिरंगे को सैल्‍यूट करने के लिए।'

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सोनू सूद हाल ही में फिलीपींस से एक से चार साल की उम्र के बच्चों को लिवर ट्रांसप्लांट के लिए भारत लेकर आए हैं।

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