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क्या सुशांत मामले में सीबीआई जांच का आदेश कानूनन सही है? महाराष्ट्र सरकार ऐसी फंसी कि जवाब भी नहीं मांग सकती; जांच में देरी से सबूत खत्म होने का खतरा

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या का मसला शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा। केंद्र सरकार ने सुशांत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बिहार सरकार के अनुरोध को स्वीकार कर जांच सीबीआई को सौंप दी गई है। नोटिफिकेशन भी जारी हो गया।

लेकिन, इस पर कई सवाल उठ रहे हैं। क्या यह कानूनन सही है? क्या सीबीआई राज्य सरकार की अनुमति के बिना मुंबई में जांच शुरू कर सकती है? अब महाराष्ट्र सरकार को क्या करना चाहिए? इन सवालों का जवाब तलाशने में मदद की वरिष्ठ सरकारी वकील उज्जवल निकम ने। आइए, जानते हैं क्या कहा उन्होंने-

शुरुआत में स्थापित कलाकारों पर उठी थीं अंगुलियां

सुशांत ने 13 जून 2020 को आत्महत्या की। आत्महत्या के कारणों को लेकर एक ही बात सामने आई। बॉलीवुड में काम कर रहे कुछ सीनियर, स्थापित कलाकारों ने जान-बूझकर ऐसे हालात पैदा किए कि सुशांत डिप्रेशन में चले गए। उन्हें आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा। इस तरह देश को एक अच्छा कलाकार गंवाना पड़ा, शुरुआत में ऐसा ही लग रहा था।

पटना में एफआईआर के बाद बदल गई जांच की दिशा

महाराष्ट्र पुलिस ने सीआरपीसी के सेक्शन 174 के तहत जांच शुरू की। कुछ मशहूर डायरेक्टर और प्रोड्यूसर्स को भी पूछताछ के लिए बुलाया गया। बॉलीवुड में खान मंडली का वर्चस्व है। सुशांत की मौत के लिए खान मंडली ही जिम्मेदार हैं, यह चर्चा सोशल मीडिया पर पसरने लगी थी।

सुशांत की मौत के 45 दिन बाद उनके पिता कृष्णकुमार सिंह ने बिहार की राजधानी पटना के एक पुलिस थाने में शिकायत दर्ज की। सुशांत के साथ रहने वाली उनकी गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती पर उन्होंने संदेह जताया और गंभीर आरोप लगाए। एफआईआर दर्ज करने के बाद बिहार पुलिस जांच के लिए मुंबई पहुंची।

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महाराष्ट्र पुलिस की भूमिका पर उठा संदेह

मुंबई पुलिस के रवैये से लगा जैसे बिहार पुलिस को इस केस की जांच का अधिकार ही नहीं है। उसका स्टैंड भी यही था। वहीं, बिहार पुलिस ने आरोप लगाया कि मुंबई पुलिस सहयोग नहीं कर रही। इस वजह से बिहार पुलिस महानिदेशक ने एक आईपीएस अधिकारी विनय तिवारी को मुंबई भेजा। यहां बीएमसी ने कोरोना नियमावली का हवाला देकर उन्हें क्वारैंटाइन में भेज दिया।

इसे आधार बनाकर अंग्रेजी और हिंदी न्यूज चैनल्स ने इस प्रकरण में कुछ तो काला है, मुंबई पुलिस कुछ छिपा रही है, ऐसा संदेह जनता के मन में बिठाया। इसका परिणाम यह हुआ कि सुशांत सिंह ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उन्हें ऐसा करने के लिए उकसाया गया, यह चर्चा पूरे देश में शुरू हो गई। सोशल मीडिया से नेट यूजर्स यह खोज लाए कि सुशांत तो आत्महत्या कर ही नहीं सकते, उनकी जरूर हत्या हुई होगी।

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दिशा सालियान की आत्महत्या का केस भी जुड़ गया

इस बीच, सुशांत सिंह की फाइनेंस मैनेजर रह चुकीं दिशा सालियान की आत्महत्या को भी फिल्म अभिनेता की आत्महत्या से जोड़ा गया। एक अंग्रेजी चैनल ने तो कुछ लोगों को बुलाकर जवाब ही मांग लिए। वास्तविकता में जो पुलिस को करना था, वह काम न्यूज चैनल्स ने अपने हाथों में ले लिया।

सुशांत के दोस्तों ने कैमरों के सामने अपनी-अपनी कहानियां सुनाईं। सुशांत ने कहा था कि दिशा की आत्महत्या के बाद मुझे ये लोग जिंदा नहीं छोड़ेंगे, ऐसा भी उसके दोस्त बोले। हकीकत तो यह है कि सुशांत की आत्महत्या के समय किसी ने ऐसा नहीं बोला था।

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बिहार के पुलिस महानिदेशक ने पकड़ा मैदान

बिहार के पुलिस महानिदेशक तो खुद ही मैदान में उतर आए। उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी न्यूज चैनल्स को इंटरव्यू का सिलसिला शुरू कर दिया। संदिग्ध आरोपी रिया चक्रवर्ती ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सुशांत प्रकरण में जांच का अधिकार बिहार पुलिस को नहीं है। महाराष्ट्र पुलिस ही इसकी जांच कर सकती है। यह होने पर बिहार पुलिस महानिदेशक ने महाराष्ट्र पुलिस पर बमबारी शुरू कर दी है। मुंबई पुलिस रिया की भाषा बोल रही है, यह भ्रम उन्होंने जनता में बनाया। मुंबई पुलिस किसी के डर से कुछ छिपा रही है, ऐसा आरोप उन्होंने लगाया। इस आरोप का फायदा उठाकर कुछ राजनेताओं ने विरोधी पार्टियों पर कीचड़ उछालना शुरू कर दिया है।

केंद्र ने बिहार सरकार की सिफारिश मानी

जांच को लेकर आरोप-प्रत्यारोप चल ही रहे थे, जब बिहार सरकार ने सुशांत की आत्महत्या की जांच सीबीआई को सौंपने की सिफारिश केंद्र को कर दी। केंद्र ने भी सुप्रीम कोर्ट में शपथ-पत्र देकर कहा कि हम यह जांच सीबीआई को सौंप रहे हैं। केंद्र ने तत्काल नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में जब सुनवाई शुरू हुई तो उसने एक हफ्ते में महाराष्ट्र और बिहार की पुलिस के साथ ही केंद्र सरकार को शपथ पत्र दाखिल करने को कहा है।

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दो राज्यों में शत्रुता देश के लिए अच्छी नहीं

कानून का विद्यार्थी होने के नाते यह प्रकरण कुछ मुद्दे उठाता है। महत्वपूर्ण यह है कि कुछ लोग बिहार विरुद्ध महाराष्ट्र पुलिस के बीच शत्रुता स्थापित करने में कामयाब रहे। यह शत्रुता राज्यों के लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए भी घातक है। बिहार पुलिस से यदि मुंबई पुलिस को कुछ सीखना पड़े तो उसे बंद ही करना पड़ जाएगा, ऐसे बयान भी आए। हमारी पुलिस बेस्ट, तुम्हारी नकारा, ऐसे बयान या माहौल बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है। लेकिन, आरोपी कहीं भी छिपकर बैठा होगा और कोई भी होगा तो भी उसे हम खोज लाएंगे, ऐसा दावा करने में बिहार के पुलिस महानिदेशक भी पीछे नहीं रहे।

क्षेत्राधिकार को लेकर क्या कहता है कानून?

लेकिन, कानून ऐसा कहता है कि जिस जगह अपराध घटित होता है, वहां की कोर्ट को ही मुकदमा चलाने का अधिकार है। सुशांत ने आत्महत्या मुंबई में की है, जिससे उसे आत्महत्या के लिए उकसाया गया या उसकी हत्या हुई, यह फैसला करने का अधिकार सिर्फ मुंबई की कोर्ट को है। लेकिन सुशांत सिंह के वकील कह रहे हैं कि इस गुनाह का कुछ हिस्सा पटना में भी घटित हुआ। वैसे, तो यह तर्क ही हास्यास्पद है। आज तक की परंपरा यह रही है कि जिस जगह गुनाह हुआ है, वहीं की पुलिस जांच करती है। यदि दूसरी जगह की पुलिस कोई मामला दर्ज करती है तो वह जांच के लिए उसी जगह भेजती है, जहां गुनाह हुआ है। लेकिन सुशांत के पिता ने मुंबई पुलिस पर विश्वास नहीं किया और बिहार पुलिस में शिकायत दाखिल की।

महाराष्ट्र पुलिस ने स्थिति स्पष्ट नहीं की, जिससे बिगड़े हालात

महाराष्ट्र पुलिस ने कभी भी और कहीं भी अपना पक्ष ऑन रिकॉर्ड नहीं रखा। इस वजह से लोगों को लगा कि बिहार पुलिस ही सच बोल रही है। मुंबई पुलिस की इमेज खराब होगी, ऐसी बयानबाजी शुरू हो गई। ऐसे तो यदि कल को कोई गुनाह महाराष्ट्र में हुआ और अपराधी बिहार भाग गया तो बिहार की पुलिस महाराष्ट्र का सहयोग नहीं करेगी। ऐसे में यह विवाद सही समय पर खत्म होना चाहिए था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जिस समय बिहार के पुलिस महानिदेशक न्यूज चैनल्स को इंटरव्यू दे रहे थे, तब उन्हें बिहार सरकार की सहमति थी। बिहार सरकार की सहमति राजनीति से प्रेरित है, ऐसा आरोप महाराष्ट्र के कई नेताओं ने लगाया है।

जांच में देर होने पर सबूत नष्ट होते जाते हैं

सुशांत और दिशा, दोनों ने ही कोई सुसाइड नोट या आत्महत्या क्यों की, यह बताने वाले पत्र नहीं छोड़े। इस वजह से अजब-गजब तर्क सामने आ रहे हैं। सुशांत या दिशा की आत्महत्या वाकई में आत्महत्या है या किसी ने उन्हें इसके लिए उकसाया है, यह बात पुलिस जांच से ही स्पष्ट हो सकती है। न्यायशास्त्र कहता है कि जब जांच में देर होती है तो सबूत भी नष्ट होते जाते हैं। दिशा की आत्महत्या के बाद सुशांत की प्रतिक्रिया क्या थी, उनके बर्ताव या व्यवहार में कोई फर्क आया था क्या, यह जांच पुलिस को करनी थी। सुशांत सिंह डिप्रेशन में चला गया था और कुछ गोलियां ले रहा था, ऐसा काउंसलर्स ने बताया है। सुशांत किस वजह से डिप्रेशन में था, मानसिक तनाव में क्यों था, इसके संबंध में कोई जांच नहीं की गई है।

कानून के सामने खड़े हो गए हैं कई प्रश्न

रिया चक्रवर्ती ने अपनी याचिका में कहा है कि सुशांत की आत्महत्या की जांच का अधिकार बिहार पुलिस को नहीं बल्कि महाराष्ट्र पुलिस को है। आज यह प्रकरण सीबीआई को सौंपा जा चुका है, ऐसे में रिया की याचिका का क्या औचित्य रह जाता है? आखिर, रिया ने याचिका में सीबीआई के संबंध में कोई भी सवाल नहीं उठाया है। रिया ने तो शुरुआत में ही भारत के गृहमंत्री को पत्र लिखकर मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का अनुरोध किया था। जांच करने का अधिकार सीबीआई को नहीं है, यह महाराष्ट्र सरकार कह सकती है। दरअसल, सीबीआई की स्थापना दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत हुई है। इसके सेक्शन-6 के अनुसार किसी भी मामले की जांच हाथ में लेने से पहले सीबीआई को संंबंधित राज्य की सहमति लेनी होती है। बिहार सरकार को सुशांत की आत्महत्या की जांच का अधिकार नहीं है तो ऐसे में उसकी सिफारिश वैध है क्या? नहीं है तो क्या केंद्र सरकार महाराष्ट्र से पूछे बिना जांच सीबीआई को सौंप सकती है? ऐसे कई प्रश्न कानून के सामने हैं। यानी इसके लिए महाराष्ट्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करनी होगी। लेकिन, यदि ऐसा किया तो सवाल उठेगा कि मुंबई पुलिस किसे बचाने के लिए इतनी भागदौड़ कर रही है।

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