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सुशांत की गर्लफ्रेंड पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप साबित हुआ तो हो सकती है 10 साल की सजा

सुशांत सिंह राजपूत के पिता केके सिंह ने पटना में एक्टर की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती समेत छह लोगों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की एफआईआर दर्ज कराई है। इसके बाद राजीव नगर पुलिस थाने में आईपीसी की धारा 306, 341, 342, 380, 406 और 420 के तहत एफआईआर दर्ज हो गई।

इससे यह मामला और ज्यादा पेचीदा हो गया। सवाल उठ रहे हैं कि क्या वाकई में रिया ने सुशांत को आत्महत्या के लिए उकसाया? यह जांच का विषय है, और पुलिस इसका जवाब तलाश रही है, लेकिन किसी के आत्महत्या करने पर उसे उकसाने का आरोप कैसे साबित होता है और इसमें सजा कितनी है?

क्या है आत्महत्या के लिए उकसाना?

इंडियन पीनल कोड यानी भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 306 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है और उसे यदि किसी ने इसेक लिए दुष्प्रेरित किया/ उकसाया है तो उसे दंडित किया जा सकता है।

आरोप सिद्ध होने पर दोषी को अधिकतम दस वर्ष जेल और आर्थिक दंड किया जाता है। आम तौर पर दोषी से वसूला गया जुर्माना मृतक के परिजनों को आर्थिक सहायता के तौर पर दिया जाता है।

आईपीसी में आत्महत्या के लिए उकसाने वाले की व्याख्या सेक्शन 108 में दी गई है। उकसावे में किसी को दुष्प्रेरित करना, साजिश में शामिल होना या किसी अपराध में साथ देना शामिल है।

यह कितना गंभीर अपराध है?

इस आरोप के तहत किसी को गिरफ्तार किए जाने पर उसकी जमानत सेशंस कोर्ट से होती है। यह एक संज्ञेय (कॉग्निजेबल), गैर-जमानती और नॉन-कम्पाउंडेबल (समझौता नहीं हो सकता) अपराध है।

कॉग्निजेबल अपराध में पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी के लिए कोर्ट से अरेस्ट वारंट की आवश्यकता नहीं होती। गैर-जमानती अपराध में आरोपी को जमानत सिर्फ कोर्ट से ही मिल सकती है।

नॉन-कम्पाउंडेबल अपराध में कोई शिकायतकर्ता अपनी शिकायत वापस नहीं ले सकता। इसमें आरोपी और शिकायत करने वालों में कोई समझौता नहीं हो सकता।

तो क्या आत्महत्या के लिए उकसाना भी हत्या है?

नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में एक फैसले में कहा था कि भले ही आरोपी की मंशा किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने की हो, इसे हत्या नहीं माना जा सकता।

भले ही दोनों मामलों में मंशा एक ही है कि उस व्यक्ति की मौत होना चाहिए। हालांकि, दोनों अलग-अलग अपराध माने जाएंगे। इसे हत्या नहीं माना जाएगा।

यदि ए ने बी को उकसाया कि वह डी की हत्या करने के लिए सी को उकसाएं तो भी हत्या का मामला सिर्फ सी पर चलेगा। बी और ए पर उकसाने का ही आरोप लगेगा।

हत्या होने पर जिसने हत्या की है, वह ही आरोपी होगा। उसे इसके लिए उकसाने वाले व्यक्ति पर अन्य सेक्शन के तहत सजा होगी। हत्या के आरोपी की तरह नहीं।

सुशांत के मामले में कोर्ट कैसे तय करेगा कि रिया ने उसे उकसाया?

आत्महत्या के लिए उकसाने के किसी भी मामले में दो फेक्टर जरूरी है। पहला यह कि किसी ने आत्महत्या की हो और दूसरा, किसी ने मंशा के तहत उसे आत्महत्या के लिए उकसाया है।

यहां सुशांत ने आत्महत्या की है। लिहाजा पहला फेक्टर सही है। लेकिन, दूसरे फेक्टर के तहत यह साबित करना जरूरी है कि रिया ने ही सुशांत को ऐसा करने के लिए उकसाया।

कोर्ट तथ्यों की जांच करेगा और देखेगा कि रिया की मंशा क्या थी? क्या वह चाहती थी कि सुशांत आत्महत्या कर लें। यदि ऐसा नहीं हुआ तो उसे दोषी नहीं माना जाएगा।

लेकिन कोर्ट किसी की मंशा कैसे तय कर सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि किसी ने कह दिया कि "जाओ और मर जाओ' और वह व्यक्ति मर गया तो इसे आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं माना जा सकता।

इससे स्पष्ट है कि किसी को गुस्से में या झल्लाहट में कुछ कह देना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है। इस तरह के मामले में किसी आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

ऐसे मामले में आरोपी की मंशा देखी जाएगी। उसका सामान्य बर्ताव देखा जाएगा। यदि हमेशा वह इसी तरह के शब्द बोलता रहा हो तो उसे दोषी नहीं माना जाएगा।

2017 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उकसावे के लिए आरोपी का अपराध से जुड़ा होना जरूरी है। यदि सिर्फ आशंका है तो उसे दोषी नहीं करार दिया जा सकता।

इसी तरह यदि आत्महत्या करने वाला भावनात्मक रूप से आम लोगों के मुकाबले कमजोर है, तो आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला कमजोर हो जाता है।

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