मुकेश तिवारी ने इस बार 6 बच्चों को पढ़ाने का संकल्प लिया, बोले- उन्हें इस बात का एहसास भी नहीं होने दूंगा अभिनेता मुकेश तिवारी सोमवार को 50 साल के हो गए। उनका जन्म 24 अगस्त 1959 को मध्यप्रदेश के सागर में हुआ था। इस मौके को उन्होंने बेहद अलग ढंग से सेलिब्रेट करते हुए इस साल 6 बच्चों को पढ़ाने का संकल्प लिया है। बर्थडे से इतर उन्होंने लॉकडाउन, नेपोटिज्म आदि विषयों पर दैनिक भास्कर के साथ खास बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश... सवाल- सबसे पहले तो यह बताइए कि लॉकडाउन में यह 5 महीने का वक्त कैसे बीता? मुकेश तिवारी- 'अभी भी लॉकडाउन बीत ही रहा है। इस दौरान मैंने राज कपूर की फिल्मों सहित कई पुरानी फिल्में देखी। दिनचर्या में बड़ा परिवर्तन आया है। सुबह 5:30 बजे उठ जाता हूं। उसके बाद 10 किलोमीटर वॉक करने के साथ व्यायाम करता हूं। सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह है कि इस दौरान मेरे अंदर बहुत ज्यादा धैर्य आ गया है, जबकि पहले छोटी-छोटी बातों से चिढ़ जाता था।' 'लॉक डाउन में मेरे हाथ से एक मलयालम फिल्म चली गई। 2 महीना पहले उसकी शूटिंग शुरू होने वाली थी, लेकिन पता चला कि वहां जाने के बाद 14 दिन क्वारैंटाइन रहना पड़ेगा। फिल्ममेकर जल्द शूट करना चाहते थे, क्योंकि बारिश में उनका सेट खराब हो रहा था। उनसे बात हुई तो मैंने कहा आप किसी और को ले लीजिए, क्योंकि एक्टर से ज्यादा सिनेमा महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने अच्छा-खासा साइनिंग अमाउंट दिया था। वैसे साइनिंग अमाउंट वापस करने की परंपरा तो नहीं है, लेकिन जब उनका साइनिंग अमाउंट वापस किया, तो वे बड़े खुश हुए। हालांकि महत्वपूर्ण रोल छूट गया, उसका दुख रहा।' सवाल- आपने लगभग 28 वर्ष की उम्र में बॉलीवुड में एंट्री की। क्या आपको लगता है कि कम उम्र में शुरुआत करते तो और आगे जाते? मुकेश तिवारी-'निश्चित तौर पर आगे जाने की संभावना रहती है। लेकिन मैं जिस दौर में आया, वह बदलता हुआ दौर था। मैं विलेन के तौर पर 'चाइना गेट' में आया। लेकिन धीरे-धीरे विलेन लुप्त होने शुरू हो गए थे। रोमांटिक और पारिवारिक फिल्में बनने लगी थीं। एक स्वतंत्र निर्माता की भूमिका समाप्त हो रही थी। लेकिन लकी रहा कि खांचे में बढ़ने की परंपरा समाप्त हो रही थी और मुझे पॉजिटिव-नेगेटिव और कॉमेडी अलग-अलग रोल मिलने लगे थे। यात्रा जारी है। संभावनाएं आगे भी हैं। रुचि, रुझान, प्रयत्न और प्रयास 20 साल पहले की तरह जारी है।' सवाल- एक अभिनेता को आखिरी वक्त तक लगता है कि उसके हुनर का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाया। आपको क्या लगता है? मुकेश तिवारी-'मुझे लगता है कि अभी तो मैंने टच ही किया है। अभी तो बहुत काम करना बाकी है। मैं हर दिन अपनी तैयारी करता हूं, क्योंकि मेरी प्रिपरेशन कमजोर नहीं होनी चाहिए। अगले दिन कौन-सा अवसर मिलेगा कह नहीं सकते। बहुत लोग मिलने के बाद तैयारी करते हैं। वर्षों के अनुभव ने मुझे सिखाया है कि एक सैनिक की तरह तैयार रहना चाहिए। लेकिन इस बात को कुंठा के तौर पर नहीं देखता हूं। मुझे लगता है कि रोल को ईमानदारी के साथ निभाना ही महत्वपूर्ण है। मुझे साउथ की फिल्मों ने भी बहुत सहारा दिया है। यहां संभावनाओं का खेल है। जिस दिन संभावना खत्म हो गई उस दिन समझ जाइए कि आपका पैकअप हो गया।' सवाल- आपने कभी साल भर में 4 फिल्में कीं तो कभी 4 साल में एक फिल्म दी। आखिर ऐसे उतार-चढ़ाव के दौर को कैसे डील किया? मुकेश तिवारी-'इस लाइन में आया था, तब यह मानकर आया था कि यह धैर्य और संयम की लाइन है। निश्चित तौर पर यह चकाचौंध की लाइन है, पर उससे प्रभावित होकर नहीं आया था। मेरा मानना है कि अगर अभिनेता में संयम नहीं है तो उसे इस लाइन में नहीं आना चाहिए। दूसरी बात मैं आलोचनात्मक रवैया रखता ही नहीं हूं। हर समय सकारात्मक रवैया अपनाता हूं। ऐसा नहीं है कि महीने के 30 दिन शूटिंग करेंगे, तभी अभिनेता हूं। महीने में 4 दिन अच्छा काम करके भी संतुष्ट रहता हूं। अपना श्रेष्ठ देना मेरा लक्ष्य है।' सवाल- बॉलीवुड में नेपोटिज्म की बातें आजकल जोर-शोर से उठ रही हैं। इन बातों से कितना इत्तेफाक रखते हैं? मुकेश तिवारी-'मैं मानता हूं कि यह आज की बनी व्यवस्था नहीं है। यह पिछले 30-40 वर्षों की बनी व्यवस्था है। यह अचानक नहीं हुआ है। हमारी इंडस्ट्री में माना जाता है कि संबंधों के आधार पर ही काम मिलता है और टैलेंट बाद में आता है। मुझे इस बात को स्वीकार करने में कोई कष्ट नहीं है।' 'यहां कोई सरकारी नियम नहीं है। यह तो इंडिविजुअल आर्ट है, इंडिविजुअल ग्रोथ है। उसकी अपनी चुनौतियां भी हैं। किसको लेना है, किसको नहीं लेना है, उसके अपने विकल्प और अपनी च्वॉइस है। लेकिन नए टैलेंट को प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए। उसे अछूत की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए।' 'जब से बॉलीवुड में कॉर्पोरेट वर्ल्ड आया है, तब से संबंधों का समाप्तिकरण हुआ है। अब इसमें मानवीय संबंधों और इमोशन की कोई वैल्यू नहीं रह गई है। कॉर्पोरेट वर्ल्ड में इमोशन का होना, मतलब बेवकूफ समझा जाता है। जबकि हम जिस कला के क्षेत्र में हैं, उसमें बिना भावनाओं के काम हो ही नहीं सकता।' 'बात ये है कि निर्णायक लोग कौन हैं। यहां निर्णायक वे लोग हैं, जो कॉर्पोरेट वर्ल्ड में बिजनेस मैनेजमेंट कोर्स करके आए हैं। उन्हें सिनेमा से कोई सरोकार नहीं है। उन्हें फाइनेंस करके दो पैसे कमाने हैं। गहराई में जाकर देखें तो इस पूरी व्यवस्था में बहुत अंतर आया है। मानवीयता का क्षय हुआ है। मैं कहूंगा कि युवा वर्ग के टैलेंट को सम्मानित करना चाहिए और उन्हें उचित अवसर दिया जाना चाहिए।' सवाल- आज के माहौल में स्टार किड्स के पोस्टर, टेलर्स और फिल्मों को लाइक से ज्यादा डिसलाइक मिल रहे हैं। क्या कहेंगे? मुकेश तिवारी- 'मैं कहूंगा कि लोग जब आपको पसंद करते थे, हाथोंहाथ लेते थे, तब बड़े खुश होते थे। उसे अपनी सफलता मानते थे कि हमारे टैलेंट की वजह से इतने लाइक मिले हैं। अगर आज सोशल मीडिया में वही लोग पसंद नहीं कर रहे हैं तो उसे गुस्से के साथ देख रहे हैं। ऐसा दो तरफा व्यवहार नहीं चलेगा। आज जब डिसलाइक मिल रहा है तो उसे अपनी विफलता मानना पड़ेगा। उस आक्रोश को भी उतने ही सम्मान से देखा जाना चाहिए।' सवाल- सागर की गलियों से निकलकर बॉलीवुड में एक मकाम बनाया। वहां की कौन-सी चीज मिस करते हैं? मुकेश तिवारी-'आज भी वहां की पान की दुकान को मिस करता हूं। पहले भी पान की दुकान पर बैठता था और आज भी जब जाता हूं तो पान की दुकान पर ही बैठता हूं। हालांकि मैं पान नहीं खाता हूं। लेकिन वहां के लोगों से मिलना-जुलना होता है।' सवाल- बर्थडे पर सबसे ज्यादा खुशी किस बात की होती है? मुकेश तिवारी-'सच कहूं तो मुंबई में रहकर अब बर्थडे पर इतनी खुशी नहीं होती है, क्योंकि मां को और परिवार को मिस करता हूं।' सवाल- बर्थडे सुनते ही सबसे पहले मन में क्या बात आती है? मुकेश तिवारी-'मां के हाथ का बना आटे का हलवा। जब बचपन और युवावस्था में घर पर होता था, तब नींद खुलती थी तो उसी आटे के हलवे की खुशबू आती थी। वही आटे का हलवा प्रसाद में चढ़ता था। आज भी वही मां के हाथ से बने आटे के हलवे के खुशबू को मिस करता हूं।' सवाल- क्या बर्थडे पर संकल्प भी लेते हैं? मुकेश तिवारी-'जी हां, संकल्प लेता हूं। पहले स्मोकिंग करता था, दो साल पहले बर्थडे पर स्मोकिंग छोड़ दी थी। पिछले बर्थडे पर ही संकल्प लिया था कि 2 बच्चों की फीस भरूंगा, तो बिल्डिंग में काम करने वाले के दो बच्चों की फीस भरकर उन्हें पढ़ा रहा हूं। इस बर्थडे पर संकल्प लिया है कि जब सागर जाऊंगा तो ऐसे जरूरतमंद 6 बच्चों की ग्यारहवीं तक की फीस अपने पास से जमा करूंगा। हां, इस बात का उन्हें एहसास नहीं होने दूंगा कि उन्हें मैं पढ़ा रहा हूं।' सवाल- 51वें बर्थडे को कैसे सेलिब्रेट किया? मुकेश तिवारी-'ऐसे माहौल में सेलिब्रेशन तो नहीं कर पाया। इस बार गणपति विराजमान है तो सुबह उनका आशीर्वाद लेकर दिन की शुरुआत की थी। शिर्डी के साईं बाबा पर मेरी गहन आस्था है। उन्हें फूल चढ़ाकर अगरबत्ती लगा कर आशीर्वाद लिया। अब खुद को और ज्यादा जिम्मेदार महसूस करने लगा हूं।' Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today मुकेश तिवारी ने इस बर्थडे पर 6 बच्चों की ग्यारहवीं तक की फीस अपने पास से जमा कराने का संकल्प लिया है। https://ift.tt/3gqE3p7

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अभिनेता मुकेश तिवारी सोमवार को 50 साल के हो गए। उनका जन्म 24 अगस्त 1959 को मध्यप्रदेश के सागर में हुआ था। इस मौके को उन्होंने बेहद अलग ढंग से सेलिब्रेट करते हुए इस साल 6 बच्चों को पढ़ाने का संकल्प लिया है। बर्थडे से इतर उन्होंने लॉकडाउन, नेपोटिज्म आदि विषयों पर दैनिक भास्कर के साथ खास बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश...

सवाल- सबसे पहले तो यह बताइए कि लॉकडाउन में यह 5 महीने का वक्त कैसे बीता?

मुकेश तिवारी- 'अभी भी लॉकडाउन बीत ही रहा है। इस दौरान मैंने राज कपूर की फिल्मों सहित कई पुरानी फिल्में देखी। दिनचर्या में बड़ा परिवर्तन आया है। सुबह 5:30 बजे उठ जाता हूं। उसके बाद 10 किलोमीटर वॉक करने के साथ व्यायाम करता हूं। सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह है कि इस दौरान मेरे अंदर बहुत ज्यादा धैर्य आ गया है, जबकि पहले छोटी-छोटी बातों से चिढ़ जाता था।'

'लॉक डाउन में मेरे हाथ से एक मलयालम फिल्म चली गई। 2 महीना पहले उसकी शूटिंग शुरू होने वाली थी, लेकिन पता चला कि वहां जाने के बाद 14 दिन क्वारैंटाइन रहना पड़ेगा। फिल्ममेकर जल्द शूट करना चाहते थे, क्योंकि बारिश में उनका सेट खराब हो रहा था। उनसे बात हुई तो मैंने कहा आप किसी और को ले लीजिए, क्योंकि एक्टर से ज्यादा सिनेमा महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने अच्छा-खासा साइनिंग अमाउंट दिया था। वैसे साइनिंग अमाउंट वापस करने की परंपरा तो नहीं है, लेकिन जब उनका साइनिंग अमाउंट वापस किया, तो वे बड़े खुश हुए। हालांकि महत्वपूर्ण रोल छूट गया, उसका दुख रहा।'

सवाल- आपने लगभग 28 वर्ष की उम्र में बॉलीवुड में एंट्री की। क्या आपको लगता है कि कम उम्र में शुरुआत करते तो और आगे जाते?

मुकेश तिवारी-'निश्चित तौर पर आगे जाने की संभावना रहती है। लेकिन मैं जिस दौर में आया, वह बदलता हुआ दौर था। मैं विलेन के तौर पर 'चाइना गेट' में आया। लेकिन धीरे-धीरे विलेन लुप्त होने शुरू हो गए थे। रोमांटिक और पारिवारिक फिल्में बनने लगी थीं। एक स्वतंत्र निर्माता की भूमिका समाप्त हो रही थी। लेकिन लकी रहा कि खांचे में बढ़ने की परंपरा समाप्त हो रही थी और मुझे पॉजिटिव-नेगेटिव और कॉमेडी अलग-अलग रोल मिलने लगे थे। यात्रा जारी है। संभावनाएं आगे भी हैं। रुचि, रुझान, प्रयत्न और प्रयास 20 साल पहले की तरह जारी है।'

सवाल- एक अभिनेता को आखिरी वक्त तक लगता है कि उसके हुनर का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाया। आपको क्या लगता है?

मुकेश तिवारी-'मुझे लगता है कि अभी तो मैंने टच ही किया है। अभी तो बहुत काम करना बाकी है। मैं हर दिन अपनी तैयारी करता हूं, क्योंकि मेरी प्रिपरेशन कमजोर नहीं होनी चाहिए। अगले दिन कौन-सा अवसर मिलेगा कह नहीं सकते। बहुत लोग मिलने के बाद तैयारी करते हैं। वर्षों के अनुभव ने मुझे सिखाया है कि एक सैनिक की तरह तैयार रहना चाहिए। लेकिन इस बात को कुंठा के तौर पर नहीं देखता हूं। मुझे लगता है कि रोल को ईमानदारी के साथ निभाना ही महत्वपूर्ण है। मुझे साउथ की फिल्मों ने भी बहुत सहारा दिया है। यहां संभावनाओं का खेल है। जिस दिन संभावना खत्म हो गई उस दिन समझ जाइए कि आपका पैकअप हो गया।'

सवाल- आपने कभी साल भर में 4 फिल्में कीं तो कभी 4 साल में एक फिल्म दी। आखिर ऐसे उतार-चढ़ाव के दौर को कैसे डील किया?

मुकेश तिवारी-'इस लाइन में आया था, तब यह मानकर आया था कि यह धैर्य और संयम की लाइन है। निश्चित तौर पर यह चकाचौंध की लाइन है, पर उससे प्रभावित होकर नहीं आया था। मेरा मानना है कि अगर अभिनेता में संयम नहीं है तो उसे इस लाइन में नहीं आना चाहिए। दूसरी बात मैं आलोचनात्मक रवैया रखता ही नहीं हूं। हर समय सकारात्मक रवैया अपनाता हूं। ऐसा नहीं है कि महीने के 30 दिन शूटिंग करेंगे, तभी अभिनेता हूं। महीने में 4 दिन अच्छा काम करके भी संतुष्ट रहता हूं। अपना श्रेष्ठ देना मेरा लक्ष्य है।'

सवाल- बॉलीवुड में नेपोटिज्म की बातें आजकल जोर-शोर से उठ रही हैं। इन बातों से कितना इत्तेफाक रखते हैं?

मुकेश तिवारी-'मैं मानता हूं कि यह आज की बनी व्यवस्था नहीं है। यह पिछले 30-40 वर्षों की बनी व्यवस्था है। यह अचानक नहीं हुआ है। हमारी इंडस्ट्री में माना जाता है कि संबंधों के आधार पर ही काम मिलता है और टैलेंट बाद में आता है। मुझे इस बात को स्वीकार करने में कोई कष्ट नहीं है।'
'यहां कोई सरकारी नियम नहीं है। यह तो इंडिविजुअल आर्ट है, इंडिविजुअल ग्रोथ है। उसकी अपनी चुनौतियां भी हैं। किसको लेना है, किसको नहीं लेना है, उसके अपने विकल्प और अपनी च्वॉइस है। लेकिन नए टैलेंट को प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए। उसे अछूत की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए।'
'जब से बॉलीवुड में कॉर्पोरेट वर्ल्ड आया है, तब से संबंधों का समाप्तिकरण हुआ है। अब इसमें मानवीय संबंधों और इमोशन की कोई वैल्यू नहीं रह गई है। कॉर्पोरेट वर्ल्ड में इमोशन का होना, मतलब बेवकूफ समझा जाता है। जबकि हम जिस कला के क्षेत्र में हैं, उसमें बिना भावनाओं के काम हो ही नहीं सकता।'
'बात ये है कि निर्णायक लोग कौन हैं। यहां निर्णायक वे लोग हैं, जो कॉर्पोरेट वर्ल्ड में बिजनेस मैनेजमेंट कोर्स करके आए हैं। उन्हें सिनेमा से कोई सरोकार नहीं है। उन्हें फाइनेंस करके दो पैसे कमाने हैं। गहराई में जाकर देखें तो इस पूरी व्यवस्था में बहुत अंतर आया है। मानवीयता का क्षय हुआ है। मैं कहूंगा कि युवा वर्ग के टैलेंट को सम्मानित करना चाहिए और उन्हें उचित अवसर दिया जाना चाहिए।'

सवाल- आज के माहौल में स्टार किड्स के पोस्टर, टेलर्स और फिल्मों को लाइक से ज्यादा डिसलाइक मिल रहे हैं। क्या कहेंगे?
मुकेश तिवारी-
'मैं कहूंगा कि लोग जब आपको पसंद करते थे, हाथोंहाथ लेते थे, तब बड़े खुश होते थे। उसे अपनी सफलता मानते थे कि हमारे टैलेंट की वजह से इतने लाइक मिले हैं। अगर आज सोशल मीडिया में वही लोग पसंद नहीं कर रहे हैं तो उसे गुस्से के साथ देख रहे हैं। ऐसा दो तरफा व्यवहार नहीं चलेगा। आज जब डिसलाइक मिल रहा है तो उसे अपनी विफलता मानना पड़ेगा। उस आक्रोश को भी उतने ही सम्मान से देखा जाना चाहिए।'

सवाल- सागर की गलियों से निकलकर बॉलीवुड में एक मकाम बनाया। वहां की कौन-सी चीज मिस करते हैं?
मुकेश तिवारी-'आज भी वहां की पान की दुकान को मिस करता हूं। पहले भी पान की दुकान पर बैठता था और आज भी जब जाता हूं तो पान की दुकान पर ही बैठता हूं। हालांकि मैं पान नहीं खाता हूं। लेकिन वहां के लोगों से मिलना-जुलना होता है।'

सवाल- बर्थडे पर सबसे ज्यादा खुशी किस बात की होती है?
मुकेश तिवारी-'सच कहूं तो मुंबई में रहकर अब बर्थडे पर इतनी खुशी नहीं होती है, क्योंकि मां को और परिवार को मिस करता हूं।'

सवाल- बर्थडे सुनते ही सबसे पहले मन में क्या बात आती है?
मुकेश तिवारी-'मां के हाथ का बना आटे का हलवा। जब बचपन और युवावस्था में घर पर होता था, तब नींद खुलती थी तो उसी आटे के हलवे की खुशबू आती थी। वही आटे का हलवा प्रसाद में चढ़ता था। आज भी वही मां के हाथ से बने आटे के हलवे के खुशबू को मिस करता हूं।'

सवाल- क्या बर्थडे पर संकल्प भी लेते हैं?
मुकेश तिवारी-'जी हां, संकल्प लेता हूं। पहले स्मोकिंग करता था, दो साल पहले बर्थडे पर स्मोकिंग छोड़ दी थी। पिछले बर्थडे पर ही संकल्प लिया था कि 2 बच्चों की फीस भरूंगा, तो बिल्डिंग में काम करने वाले के दो बच्चों की फीस भरकर उन्हें पढ़ा रहा हूं। इस बर्थडे पर संकल्प लिया है कि जब सागर जाऊंगा तो ऐसे जरूरतमंद 6 बच्चों की ग्यारहवीं तक की फीस अपने पास से जमा करूंगा। हां, इस बात का उन्हें एहसास नहीं होने दूंगा कि उन्हें मैं पढ़ा रहा हूं।'

सवाल- 51वें बर्थडे को कैसे सेलिब्रेट किया?
मुकेश तिवारी-'ऐसे माहौल में सेलिब्रेशन तो नहीं कर पाया। इस बार गणपति विराजमान है तो सुबह उनका आशीर्वाद लेकर दिन की शुरुआत की थी। शिर्डी के साईं बाबा पर मेरी गहन आस्था है। उन्हें फूल चढ़ाकर अगरबत्ती लगा कर आशीर्वाद लिया। अब खुद को और ज्यादा जिम्मेदार महसूस करने लगा हूं।'



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मुकेश तिवारी ने इस बर्थडे पर 6 बच्चों की ग्यारहवीं तक की फीस अपने पास से जमा कराने का संकल्प लिया है।


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