बॉलीवुड के लिए सोमवार का दिन एक और बुरी खबर लेकर आया, जब फेमस डायरेक्टर निशिकांत कामत का 50 साल की उम्र में निधन हो गया। वे लिवर सिरोसिस बीमारी से पीड़ित थे और बीते 17 दिनों से हैदराबाद के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में बतौर फोर्थ असिस्टेंट करियर शुरू करने वाले कामत ने ऐसे दिन भी देखे जब लगातार तीन सालों तक उन्हें कोई काम नहीं मिला।
कुछ वक्त पहले एक चैनल को दिए इंटरव्यू में कामत ने अपने से जुड़ी कई बातें बताई थीं। मुंबई के रहने वाले कामत एक शिक्षित परिवार से आते थे, उनकी मां संस्कृत की प्रोफेसर थीं और पिता गणित पढ़ाते थे। जबकि उन्होंने खुद होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया था। हालांकि उन्हें लगता था कि उनकी वजह से वहां कि एक सीट बर्बाद हो गई थी।
कम उम्र में शुरू कर दिया था थिएटर
कामत ने 11वीं-12वीं की पढ़ाई के दौरान ही थिएटर करना शुरू कर दिया था। उनके मुताबिक एकबार वे एक प्ले की रिहर्सल देखने गए थे तो वहां डायरेक्टर ने उनसे पूछा कि चार लड़कों में खड़ा रहेगा क्या, वहां पर हां करने के बाद ही चार लड़कों में खड़ा रहने के चक्कर में उन्हें थिएटर का चस्का लग गया।
इसके बाद उन्होंने दो साल थिएटर किया। उन्हें लग रहा था कि वे केवल शौकिया तौर पर ही थिएटर कर रहे थे। लेकिन जब वे होटल मैनेजमेंट करने गोवा पहुंचे, तो वहां जाकर अहसास हुआ कि उन्हें थिएटर और फिल्मों का बहुत ज्यादा शौक है।
बतौर फोर्थ असिस्टेंट शुरू किया करियर
कामत ने दूरदर्शन के लिए बने एक मराठी सीरियल में बतौर फोर्थ असिस्टेंट काम शुरू किया था। इसी सिलसिले में उन्हें टेप लेकर एडिटर के पास जाने का काम पड़ता रहता था, इसी दौरान कुछ ही वक्त में उन्होंने एडटिंग सीख ली और 22 साल की उम्र में एडिटर बन गए। इसके बाद दो साल तक उन्होंने एडिटिंग की।
पहला डायरेक्शन टीवी के लिए किया
24 साल की उम्र में पहली बार टीवी में डायरेक्शन का मौका मिला और इसके बाद से ही वे डायरेक्टर बन गए। टीवी में 5-6 साल काम करने के बाद उन्हें लगा कि टीवी बहुत हो गई, अब फिल्में करना चाहिए। लेकिन जब भी किसी फिल्म ऑफिस में जाते तो टीवी इंडस्ट्री से होने की वजह से लोग उन्हें गंभीरता से नहीं लेते थे।
फिल्मों के लिए छोड़ना पड़ी थी टीवी
टीवी इंडस्ट्री की वजह से अनदेखा किए जाने से वे इतने दुखी हुए कि उन्होंने सीरियल बनाना ही छोड़ दिया। जिसके चलते अगले एक-दो साल उन्हें कोई काम नहीं मिला। फिर उन्होंने इंडस्ट्री में एंट्री लेने का एक नया रास्ता निकाला और वे स्क्रिप्ट राइटर बन गए। अगले तीन साल तक राइटिंग का काम किया।
लिखने के साथ फिल्मों में एक्टिंग भी की
राइटिंग का काम करने के दौरान ही उन्हें अपनी लिखी फिल्मों 'हवा आने दे' और 'सातच्या आत घरात' में एक्टिंग करने का मौका भी मिला। इसके बाद साल 2005 में फिल्म डायरेक्शन करने का उनका सपना पूरा हुआ।
तीन साल बेहद तंगी में गुजारे
1999 से 2001 के बीच तीन साल तक निशिकांत को कोई काम नहीं मिला था और वो बेरोजगार रहे। उनका कहना था कि वो बहुत डरावना दौर था और उन तीन सालों ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया। उनके मुताबिक उस वक्त उनके पास सिर्फ दो पैंट, चार शर्ट, एक स्लीपर और एक जोड़ी जूते ही थे। हालांकि इस दौरान उनके दोस्तों ने उनकी बहुत मदद की थी और उनका पूरा खर्चा उठाया था।
यूं मिला फिल्म डायरेक्शन का मौका
बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म 'डोंबिवली फास्ट' बनाने के बारे में उनका कहना था, उस वक्त मैं यूटीवी फिल्म्स में स्क्रिप्ट कंसल्टेंट के तौर पर काम कर रहा था। उस फिल्म की स्टोरी मैंने साल 2003 में लिखकर रखी थी, लेकिन सालभर तक मुझे कोई प्रोड्यूसर नहीं मिला। 2004 के अंत में मुझे एक प्रोड्यूसर मिल गए। उस वक्त वो फिल्म प्रचार के खर्चों को जोड़कर कुल 67 लाख रुपए में बनी थी।
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hi wite for you