यशराज बैनर की रानी मुखर्जी स्टारर फिल्म 'मर्दानी' की रिलीज को शनिवार को छह साल पूरे हो गए। ये फिल्म 22 अगस्त 2014 को रिलीज हुई थी। इस मौके पर फिल्म के लेखक गोपी पुथरन ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत करते हुए फिल्म से जुड़े अपने अनुभव को शेयर किया।
पुथरन ने कहा, 'मैं पिछले दस सालों से यशराज बैनर की फिल्मों से जुड़ा रहा हूं। आज ‘मर्दानी’ के छह साल पूरे हो रहे हैं। इसकी कहानी के पीछे यही मकसद था कि महिलाओं की जिंदगी के सफर और समस्याओं के बारे में ईमानदारी से बताया जाए। दुर्भाग्य से उन पर वैसी फिल्में कम बनती रही हैं। हमने उनकी दुनिया को वैसा दिखाया, जहां उन्हें कदम-कदम पर समझौते करने को कहा जाता है।
महिलाओं से जुड़े मुद्दे उठाना चाहते थे
उन्होंने बताया, 'इस फ्रेंचाइजी के जरिए हम वैसे विषयों को छूना चाहते थे, जिनका सीधा संबंध देश की महिलाओं से है। उन विषयों को हम थ्रिलर के फॉर्मेट में पेश करना चाहते थे। ऐसी कहानियों का बैकग्राउंड वेस्ट दिल्ली, राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों या एनसीआर में रखने की कोई खास वजह नहीं थी। यह नहीं कहा जा सकता कि बेरहमी के साथ रेप का मसला सिर्फ इन्हीं इलाकों में सीमित है। जहां भी औरतों और मर्दों के बीच आदर के साथ संवाद का मौका नहीं है, वहां ऐसी समस्याएं ज्यादा हैं।'
आदित्य चोपड़ा से मिला पूरा सहयोग
'इस कहानी और थीम को आदित्य चोपड़ा ने पूरी तरह से बैक किया। किसी बात पर अगर मेरी सोच अलग होती है तो मैं बेझिझक उस विषय पर उनके साथ बहस कर सकता हूं। मैं अपनी बात खुलकर कह सकता हूं, यहां तक कि नौसिखिये के रूप में भी मैं उनके सामने अपनी बात रखता रहा हूं।'
एक्शन सीक्वेंस में माहिर हैं रानी
'सोने पे सुहागा रानी मुखर्जी के साथ भी मधुर संबंध रहे। उन्होंने सही मायनों में किरदार में जान डाल दी। वो एक्शन सीक्वेंस की माहिर हैं। पहले और दूसरे दोनों पार्ट में एक्शन सीक्वेंस में उनकी एक्टिंग नैचुरल लगी। वे एक समय पर अपने किरदार में नाजुक और सख्त पहलुओं को पर्दे पर लाती हैं।'
फ्रेंचाइजी को बनाने में दादा का अहम रोल
'इस फ्रेंचाइजी के आगाज में दादा यानी प्रदीप सरकार की सबसे अहम भूमिका थी। ‘मर्दानी’ को उन्होंने डायरेक्ट किया था। मैंने असिस्ट किया था। उससे पहले मैंने उन्हें ‘लफंगे परिंदे’ पर असिस्ट किया था। तब से ही डायरेक्शन के लिए मैं सही मौके के इंतजार में था। ‘मर्दानी 2’ में आगे चलकर मुझे वह मौका मिल गया।'
रानी मुखर्जी इसी किरदार के लिए बनी हैं
‘मर्दानी’ टाइटिल का नाता वॉरियर से था। शिवानी शिवाजी रॉय का किरदार हर दिन जिंदगी और मौत से जूझ रहा था। लिहाजा वहां उस किरदार को लार्जर दैन लाइफ के साथ-साथ नो नॉनसेंस भी रखा गया। रानी मुखर्जी तो जैसे इस किरदार के लिए ही बनीं हैं। वो असल क्राइम ब्रांच अफसरों से जाकर मिलीं।'
'यह महसूस किया कि खतरनाक अपराधी जब पुलिस के साथ खतरनाक खेल खेलते हैं तो उन पर क्या गुजरती है। क्या वो बिखर जाते हैं या उन चुनौतियों की ईंट का जवाब पत्थर से देते हैं।'
लेस लाइट इफेक्ट के साथ हुई थी शूटिंग
'हमने ‘मर्दानी’ में मानव तस्करी को डील किया था। उसके अपराधी किस तरह से अपराध को अंजाम देते हैं, उनसे हम परिचित हैं। पर ज्यादातर लोग डिनायल मोड में रहते हैं। इंडिया में भी मानव तस्करों का माफिया है। दिल्ली और मुंबई में। पहले लोकेशन थाईलैंड थी, पर बाद में इसे दिल्ली और मुंबई में सेट किया गया।'
'यह थ्रिलर जॉनर की फिल्म थी। मुझे इस चीज ने फैसिनेट किया कि विलेन कौन है, यह कोई नहीं जानता। वह मिथ है बस। वहां तक पहुंचने के लिए शिवानी शिवाजी रॉय को 27 अड़चनों से गुजरना पड़ता है। शूट में लेस लाइट इफेक्ट रखा गया था। कोई स्लो मोशन सीक्वेंस नहीं थे।'
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hi wite for you