सोशल मीडिया पर फिल्म मेकर अनुभव सिन्हा ने पोस्ट किया कि वे ‘बॉलीवुड से रिजाइन’ कर रहे हैं। इससे उनके चाहने वालों में चिंता और उत्सुकता का माहौल बन गया कि आखिर इसका क्या मतलब है। अनुभव के इस फैसले का अनुराग कश्यप, हंसल मेहता और सुधीर मिश्रा ने भी सपोर्ट किया। अब सुधीर मिश्रा ने दैनिक भास्कर को इसके मायने बताए। उन्होंने कहा- ’बॉलीवुड से रिजाइन’ का मतलब इंडस्ट्री छोड़ना नहीं है।
तेल साबुन बेचकर फिल्में बनाने वालों से दिक्कत
सुधीर ने कहा- अनुभव, मैं या कोई और.. ऐसा कुछ नहीं कर रहा है। इसका मतलब सीधा सा है। फिल्म इंडस्ट्री को 'बॉलीवुड' टर्म से नवाजा नहीं जाना चाहिए। ऐसा करके हम हिंदुस्तानी सिनेमा का अपमान कर रहे हैं। सिर्फ बॉलीवुड शब्द बोलकर हम पूर्वी हिंदुस्तान के सत्यजित रे से लेकर केरल के अडूर गोपालाकृष्णन के काम की जगहंसाई कर रहे हैं। इंडस्ट्री से रिजाइन करने की बात नहीं है। हमें बॉलीवुड टर्म से दिक्कत है। एक तरह से उन लोगों से परेशानी है, जो तेल साबुन बेचते हैं और साइड में फिल्में बनाते हैं।
सुधीर आगे कहते हैं- हम पर जानू बरूआ, भूपेन हजारिका से लेकर राज कपूर, के आसिफ, गुरुदत्त, तमिल डायरेक्टर भारतन का बहुत असर है। हम चाहते हैं कि इंडस्ट्री की पहचान हिंदुस्तानियत से हो। आंध्रा का फ्लेवर राम गोपाल वर्मा लेकर आते हैं हिंदी सिनेमा में। बॉलीवुड जो टर्म है, उसका क्रिएटिविटी से ताल्लुक कम, धंधे से ज्यादा है। धंधा भी हो, मगर क्रिएटिविटी हाशिए पर न जाए। उमेश कुलकर्णी हैं महाराष्ट्र में, जो बहुत अच्छा कर रहे हैं। ‘बॉलीवुड से रिजाइन’ का मतलब जिस तरह का सिनेमा श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, सत्यजित रे बनाया करते थे उसकी ओर जाओ। अच्छे गीतकार लाओ, वैसा सिनेमा आए।
नेपोटिज्म नहीं टैलेंट पर ही फोकस रहे
नेपोटिज्म पर अपनी राय रखते हुए मिश्रा बोले- जो आपस के झगडे हैं, नेपोटिज्म और ग्रुपिज्म का, उन सब से दूर होने की जरूरत है। आखिर में टैलेंट ही काम आता है। उस पर फोकस हो। मेरे तो बच्चे नहीं हैं, तो मैं कल को नेपोटिज्म बिजनेस से दूर ही रहूं। पर अगर रहते तो क्या मैं उनको मौका नहीं देता। किसी भी पार्टी में देख लो सारे नेताओं के बच्चे पॉलिटिक्स में हैं। जयंत सिन्हा घूम-घाम कर आ गए हैं पार्टी में। मुंबई के सारे डॉक्टर के बच्चे डॉक्टर हैं।
हम ग्रुपिज्म के कंट्रोल से बाहर
इंडस्ट्री में चल रही गुटबाजी पर सुधीर ने बताया- जहां तक ग्रुपिज्म का सवाल है तो मैं कभी उससे कंट्रोल नहीं हुआ। अनुभव कभी नहीं हुआ। अनुराग नहीं हुआ। मनोज बाजपेयी ने क्या 22 सालों से सफलता हासिल नहीं की है। तथाकथित स्टार से उनका करियर लंबा चलेगा। स्टार्स की चमक दस सालों में फीकी हो जाएगी। यह बात जरूर है कि कॉमर्स बहुत सारी चीजों को निर्धारित करता है। जो नॉन कमर्शियल लोग हैं, उनको थोड़ी बहुत तकलीफ होती है। शाहरुख खान तो आउटसाइडर हैं। 25 साल से स्टार हैं। सलमान स्क्रिप्ट राइटर के बेटे हैं। सलीम खान साहब अपने जमाने में पॉवरफुल थे। पर जब सलमान खड़े हुए थे, तब सलीम साहब उतने पॉवरफुल नहीं थे।
मैंने किसी की मदद नहीं ली आज तक, पर अब तक खड़ा हूं। कलकत्ता मेल बनाने के बाद दिमाग खराब हुआ तो ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ बनाई, जिसमें कोई स्टार नहीं था।
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hi wite for you