शहरों की भीड़ में खो रही खुशियों की कहानी बयां करती है साल 2017 में आई शॉर्ट फिल्म 'हैप्पीनेस', आंखें खोल देगी स्टीव कट्ट की एनिमेटेड फिल्म काम और कामयाबी की तलाश में गांव और छोटे शहरों को छोड़कर मेट्रो सिटीज की तरफ रुख कर लेना इन दिनों आम बात हो गई है। हर व्यक्ति इन दिनों एक बड़ी भीड़ का हिस्सा बनने के लिए मजबूर है। ऐसी हीकहानी बयां करती है स्टीव कट्ट की साल 2017 में रिलीज हुई शॉर्ट फिल्म 'हैप्पीनेस'। स्टीव कट्ट एक एनिमेशन आर्टिस्ट हैं जो जिंदगी और सोसाइटी से जुड़ी कहानियां एनिमेशन के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाते हैं। साल 2017 में आई 4 मिनट 33 सेकंड कीफिल्म 'हैप्पीनेस' चूहों की दौड़ की कहानी है जिसे इन दिनों इंसान जी रहे हैं। ये कहानी हर उस शख्स के इमोशन्स के साथ खेलती है जो हर सुबह काम और दफ्तर के लिए लाखों की भीड़ के बीच से संघर्ष करके गुजरता है। लोग भीड़ में अपनी खुशी और पहचान भी खो देते हैं। ये महज एक दिन की कहानी नहीं है। शहर की भीड़ में हर इंसान की खुशियां कहीं गुम हो चुकी हैं। हर शख्स एक मीडिओकर बनकर डिप्रेशनमें जिंदगी जीने के लिए मजबूर है। शॉर्ट फिल्म सोसाइटी और जिंदगी से जुड़े कई अहम मैसेज दे रही है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे हर शख्स भीड़ का हिस्सा बना हुआ है। खुशियां ढूंढने के लिए कभी लोग शराब तो कभी दवाइयों का सहारा ले रहे हैं। हर कोई खुशियों के बजाय इन दिनों पैसों के पीछे भाग रहा है और इस लालच ने उन्हें एक मामुली दफ्तर में फंसा दिया है। 'हैप्पीनेस' फिल्म कई तरह से मेट्रो सिटीज की कहानी बयां करती हैं जहां लोगों की नींद ट्रेफिक के शोर से खुलती है। हर कोई मेट्रो, बसों, सड़कों और सबवे की एक बड़ी भीड़ का हिस्सा है। मेट्रो सिटी में ऐसे कम ही लोग हैं जो शायद बिना धक्का खाए अपने दफ्तर पहुंचते हैं। इन सब का मुख्य कारण है जनसंख्या। लोग अपने शहरों को छोड़कर बड़े शहरों में बड़े अवसर की तलाश में निकलते हैं। अगर शहरीकरण सही तरह से हो और हर शहर में लोगों को अच्छे अवसर मिलें तो शायद मेट्रो सिटीज की तरफ भागने का ट्रेंड कम हो जाए। स्टीव कट्ट कई सालों से लगातार सोसाइटी के स्टीरिओटाइप पर बेहतरीन शॉर्ट फिल्में बनाते रहे हैं। लोगों की आंखे खोल देने वाली फिल्में बनाने के लिए स्टीव को कई अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today The short film 'Happiness' tells the story of happiness lost in the crowd of cities,Steve cutt's animated film will open the eyes https://ift.tt/3iSzM04

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काम और कामयाबी की तलाश में गांव और छोटे शहरों को छोड़कर मेट्रो सिटीज की तरफ रुख कर लेना इन दिनों आम बात हो गई है। हर व्यक्ति इन दिनों एक बड़ी भीड़ का हिस्सा बनने के लिए मजबूर है। ऐसी हीकहानी बयां करती है स्टीव कट्ट की साल 2017 में रिलीज हुई शॉर्ट फिल्म 'हैप्पीनेस'।

स्टीव कट्ट एक एनिमेशन आर्टिस्ट हैं जो जिंदगी और सोसाइटी से जुड़ी कहानियां एनिमेशन के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाते हैं। साल 2017 में आई 4 मिनट 33 सेकंड कीफिल्म 'हैप्पीनेस' चूहों की दौड़ की कहानी है जिसे इन दिनों इंसान जी रहे हैं। ये कहानी हर उस शख्स के इमोशन्स के साथ खेलती है जो हर सुबह काम और दफ्तर के लिए लाखों की भीड़ के बीच से संघर्ष करके गुजरता है। लोग भीड़ में अपनी खुशी और पहचान भी खो देते हैं। ये महज एक दिन की कहानी नहीं है। शहर की भीड़ में हर इंसान की खुशियां कहीं गुम हो चुकी हैं। हर शख्स एक मीडिओकर बनकर डिप्रेशनमें जिंदगी जीने के लिए मजबूर है।

शॉर्ट फिल्म सोसाइटी और जिंदगी से जुड़े कई अहम मैसेज दे रही है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे हर शख्स भीड़ का हिस्सा बना हुआ है। खुशियां ढूंढने के लिए कभी लोग शराब तो कभी दवाइयों का सहारा ले रहे हैं। हर कोई खुशियों के बजाय इन दिनों पैसों के पीछे भाग रहा है और इस लालच ने उन्हें एक मामुली दफ्तर में फंसा दिया है।

'हैप्पीनेस' फिल्म कई तरह से मेट्रो सिटीज की कहानी बयां करती हैं जहां लोगों की नींद ट्रेफिक के शोर से खुलती है। हर कोई मेट्रो, बसों, सड़कों और सबवे की एक बड़ी भीड़ का हिस्सा है। मेट्रो सिटी में ऐसे कम ही लोग हैं जो शायद बिना धक्का खाए अपने दफ्तर पहुंचते हैं। इन सब का मुख्य कारण है जनसंख्या। लोग अपने शहरों को छोड़कर बड़े शहरों में बड़े अवसर की तलाश में निकलते हैं। अगर शहरीकरण सही तरह से हो और हर शहर में लोगों को अच्छे अवसर मिलें तो शायद मेट्रो सिटीज की तरफ भागने का ट्रेंड कम हो जाए।

स्टीव कट्ट कई सालों से लगातार सोसाइटी के स्टीरिओटाइप पर बेहतरीन शॉर्ट फिल्में बनाते रहे हैं। लोगों की आंखे खोल देने वाली फिल्में बनाने के लिए स्टीव को कई अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है।



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The short film 'Happiness' tells the story of happiness lost in the crowd of cities,Steve cutt's animated film will open the eyes


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